आज मुझे अमृता प्रीतम की चंद पंक्तियाँ याद आ रही हैं !

”इंसान की जिंदगी में एक वक्त ऐसा आता है I जब उसे लगता है कि उसके मुंह में जुबान नहीं है या फिर कोई जुबान ही नहीं है” मुझे भी ऐसा लग रहा है जैसे आज मेरे पास जुबान ही नहीं है I अर्पिता जिसका जन्म 23 अगस्त 2000 को हुआ था ।

बेहद खूबसूरत, परी जैसी अर्पिता हर किसी का दिल जीत लेती थी । एक अलग नूर था इस आत्मा में, मानों त्याग की देवी ज़मीं पे उतर आई हो, खूबसूरत प्यारी सी मुस्कान, जिंदा दिल….. आह भरते हुए माँ मीनू ने कहा ! जब मैं और उसके पापा उसे स्कूल में दाखिला दिलाने गए तो स्कूल का फार्म भरते हुए उसने कहा कि मेरा नाम अर्पिता सिंह है ।

हमें भी आश्चर्य हुआ कि बेटी क्या कह रही है ? लेकिन उनकी प्रिंसिपल श्रीमती बिंदू शर्मा बहुत अच्छे व्यक्तित्व की मालिक थीं I इस नामी स्कूल को एक मुकाम तक पहुंचाने वाली प्रिंसिपल थीं I उन्होंने कहा कोई बात नहीं, अर्पिता सिंह ठीक हैं। यदि बेटी को पसंद है तो हमे उसकी बात मान लेनी चाहिए ।

हम प्रिंसिपल  मैडम से सहमत हो गए और फिर इसके बाद इस बेटी का नाम अर्पिता सिंह हो गया I

अर्पिता एक बहुत ही प्रतिभाशाली परिश्रमी और एकदम दूसरों से अलग सी थी। स्कूली दिनों में वह हर प्रतियोगिता में भाग लेती और इस तरह उसने कम उम्र में ही कई खिताब अपने नाम कर लिए । हमेशा कक्षा में अव्वल आती थी और वह स्कूल की हर गतिविधि में अपनी उपस्थिती दर्शाती I

वह  स्कूल के हर रंगारंग कार्यक्रम में भाग लेती । कभी मीरा बनी, कभी शिवजी, कभी निहंग सिंह और कुछ बहुत कुछ जाने क्या-क्या !

 हर प्रतियोगिता में अर्पिता ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। एक बार वह मिस कार्नेशन (सबसे खूबसूरत) भी बन गईं। पांच साल की छोटी सी उम्र में उसे NIIFT के लिए मॉडल बनने का सम्मान भी मिला ।

 15 दिसंबर 2005 को अर्पिता की छोटी बहन तन्वी सिंह का जन्म भी अर्पिता की तरह ही हुआ था I माता-पिता बहुत खुश थे । माँ-बाप दोनों बेटियों को लेकर बहुत उत्साहित थे, ज़िंदगी जीने का एक मकसद मिल गया था I दोनों बेटियाँ खूबसूरत और तंदरुस्त थी I

सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक 24 दिसंबर 2008 को अर्पिता अचानक बीमार पड़ गईं । इस छोटी सी बच्ची को बहुत जगह दिखाया I थक हार कर पी. जी. आई . चंडीगढ़ दाख़िल करवाया गया और फिर यहाँ पी.जी.आई. चंडीगढ़ के डॉक्टरों की गहन चिकित्सा  के बाद पता चला कि अर्पिता को  ब्रेन ट्यूमर हो गया है I

ट्यूमर का नाम सुनते ही माता पिता की हालत बहुत ख़राब हो गई I इतनी छोटी  बच्ची की यह हालत देखकर सब परेशान हो गए थे I

असल कहानी तब शुरू होती है जब 23 जनवरी 2009 के दिन माँ को पता चला कि अब अर्पिता का बचना संभव नहीं है तो माँ को एक आदर्श शक्ति ने कहा कि इस प्यारी सी बेटी को इस  संसार से इतनी जल्दी मत जाने दो ।

माँ ने डॉक्टर से कहा कि मैं अर्पिता को जिंदा रखना चाहती हूँ I तब  डॉक्टरों ने  परिवार को सलाह दी कि यह सब अंग प्रयत्यारोपन द्वारा ही  संभव है I  25 जनवरी 2009 को अर्पिता सिंह ने यह शरीर छोड़ दिया और फिर वह पाँच गुणा होकर पाँच ज़िंदगियाँ में जीने लगी ।

2009 के समय अनुसार, अंगदान की लोगों को बहुत ही कम जानकारी थी और ना ही लोग अंगदान संबन्धित कोई जायदा बात ही करना चाहते थे I लोगों में अंगदान को लेकर धार्मिक-सामाजिक और रूढ़िवादी धारणायेँ  बहुत जटिल तरीके से विकसित थी I जिस वक़्त किसी परिवार वालों को जिनका कोई अपना निकटतम बहुत ही प्यारा इंसान साहमने-साहमने दुनिया से जा रहा हो और आप उस परिवार को अंगदान के लिए प्रेरित करे,असंभव था I

 डॉक्टर भी इस बात को मानते थे कि यह बहुत कठिन काम था I उस वक्त अर्पिता के परिवार ने अपना फैसला डॉक्टरों को सुनाया और अर्पिता सिंह के जरूरी अंगों को दान करने के लिए सहमति दी एक बहुत बड़ा काम था  I

आज अर्पिता के दोनों किडनियाँ, आंखें, लीवर सब अभी भी इस दुनिया में हैं । वह कभी इस दुनिया से नहीं गई I वह प्रत्यक्ष रूप से ना सही पर अप्रत्यक्ष रूप में दूसरों को ज़िंदगी देकर खुद अमर हो गई I

 अर्पिता की एक किडनी हरीश मेहता (मनीमाजरा पंजाब) और एक मधु बंसल (रामपुरा फूल पंजाब) जिनकी उम्र क्रमश 25 और 45 साल थी, को लगाई गई थी । वे दोनों आज भी ठीक हैं और खुशी से जी रहें हैं I अर्पिता की दो आँखों ने दो अंधेरी ज़िंदगियों में उजाला लाया I अर्पिता के अमर होने के बाद उन्हें हरियाणा के राज्यपाल द्वारा सम्मानित भी किया गया । उस समय अर्पिता सिंह सबसे छोटा बच्चा था जिसके अंगों को प्रत्यारोपित करके पाँच रोगियों को नई साँसे देकर उनको नई ज़िदगी दी गई थी । उन्हें नेत्रदान समितियों द्वारा भी सम्मानित किया गया था ।

अर्पिता के बलिदान और उसके माता-पिता द्वारा समाज के लिए किया यह एक असाधारण और मानवता  का  उत्कृष्ट कार्य है I सच में जब हम  इस दुनिया से चले जाते तो मरने के बाद भी हम दूसरों को नई ज़िंदगी देकर उसे जीवित रख कर मानवता का यह महान कार्य कर सकते हैं I हमारे बेशकीमती अंगों का प्रत्यारोपण करके किसी दूसरे रोगी को जीवनदान दिया जा सकता है । किसी को आंखों की रोशनी देकर किसी की अंधेरी दुनिया को रोशन किया जा सकता है I कुल मिलकर एक इंसान दुनिया से जाने के बाद आठ जिंदगियाँ बचा सकता है I

अंगदान से  बड़ा दान कोई नहीं है क्योंकि यह दूसरों को ज़िंदगी देता है I मरने वाला मर के भी अमर हो जाता है I

 आज अर्पिता हमारे बीच नहीं है, पर वो दूसरों में रहकर यह संसार जी रही है, सब कुछ महसूस कर रही है I

उस समय दिया हुआ अर्पिता का बलिदान समाज में जागरूकता लाने में आज एक  सफल मुकाम साबित हो रहा है I अब हम यह समझ रहें हैं कि जब भी कोई व्यक्ति ब्रेन डेड होता है तो ब्रेन डेथ के बाद भी उसके अंग किसी को जीवन दे सकते हैं। किसी की जान बचाना सबसे बड़ा दान है ।

 जैसे कि भारत मे प्रति वर्ष औसतन पाँच लाख  इंसान दुनिया से चले जाते है क्योकि उनका जरूरी अंग ट्रांसप्लांट नहीं हो पता I दूसरे लफ़्ज़ों मे हम यह कह सकते हैं कि भारत मे अंग दान के बारे मे जानकारी का बहुत अभाव है, जिस के रहते हम मरने के बाद अपने सारे जरूरी अंग यां तो जला देते हैं और यां मिट्टी मे दफ़ना देते है और यह बहुमूल्य अंग हमारे दुनिया के जाने के बाद किसी और के काम नहीं आते हैं I अर्पिता और उस जैसे महान इंसानों से प्रेरित होकर मैं इस असाधारण एवं उत्कृष्ट मानवीय कार्य की भारत वर्ष में अपने राष्ट्रीय अंगदान जागरूकता अभियान के तहत देश के कोने-कोने में जाकर देशवासीयों जानकारी देने का एक प्रयास कर रहा हूँ I सबके एकजुट प्रयत्न से अब भारत में लोग अंगदान को  सकारात्मक रूप से लेना शुरू हो गएं है और इसके आकड़े भी इस बात के गवाह हैं I भारत में अब अंगदान का प्रचलन धीरे-धीरे से ही सही पर दिनप्रति दिन बढ़ रहा है I वर्ष 2013 में भारत में कुल 5000 से कम ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुए थे और वर्ष 2022 में यह आंकड़ा 15000 से जायदा हो गया I  इसका मतलब अंगदान के प्रति भारत में लोगों का सकारात्मक नज़रिया हो रहा है I वर्ष 2016 में 930  मृतक अंगदानीयों के 2265 अंगों का ट्रांसप्लांट करके इतने ही रोगियों की जान बचाई गई I वहीं वर्ष 2022 में 904 मृतक अंगदानीयों के 2765 अंगों को रोगियों में लगाकर इनकी जान बचाई गई I   अंगदान की जायदा से जायदा जानकारी फैलाकर हम हर साल लाखों जानें बचा सकते हैं I

यदि हम इस दुनियाँ में आएं हैं तो यहाँ  से एक दिन जाना भी जीवन का सत्य है, पर जाते-जाते हम मानव कल्याण के लिए  बहुत कुछ कर सकते हैं आइए हम सब  मिलकर भारत के वो अंगदानी जो इस संसार से जाने के बाद औरों को जीवन दे गए उनके बलिदान को सलाम करते हैं और सब मिलकर राष्ट्रीय अंगदान जागरूकता अभियान को आगे बढ़ा कर हर साल लाखों लोगों की जान बचा कर मानवीय मूल्यों का एक उत्कृष्ट कार्य करके दूसरों  की ज़िंदगियों को रोशन करें ।                                                                                 

                                                                                                                                           -राकेश बैंस

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